जिप्सम विकास प्राधिकरण की स्थापना 1950 में की गई, जिसका मुख्य उद्धेश्य जिप्सम के खोज व खनन के द्वारा उर्वरक कम्पनियों को अमोनियम सल्फेट को कच्चे माल के रूप उपलब्ध कराना था। वर्ष 1952 में सिन्दरी फर्टिलाइजर एवं केमिकल्स लिमिटेड के स्थापना के बाद जिप्सम विकास प्राधिकरण का इसमें विलय कर दिया गया। वर्ष 1961 में सिन्दरी फर्टिलाइजर एवं केमिकल्स लिमिटेड एवं हिन्दुस्तान केमिकल्स एवं फर्टिलाइजर लिमिटेड का एकीकारण कर एक नयी कम्पनी भारतीय उर्वरक निगम बनाई गयी एवं जिप्सम विकास प्राधिकरण को एक नया नाम जोधपुर खनन संस्थान दिया गया। जो कि भारतीय उर्वरक निगम की एक इकाई वर्ष 1961 से बनी। सिन्दरी के तर्क संगत योजना के अन्र्तगत बदलाव एवं जिप्सम की मांग में कमी के कारण, जोधपुर खनन संस्थान ने अपनी गतिविधियों को विविधापूर्ण तरीके से वर्ष 1979 के पश्चात पंजाब, हरियाणा एवं यू.पी. में अम्लीय भूमि को विकसित किया।
उसके पश्चात वर्ष 2003 में जोधपुर खनन संस्थान को भारतीय उर्वरक निगम से अलग कर भारत सरकार के पूर्ण नियन्त्रण वाली एक नयी कम्पनी एफ सी आई अरावली जिप्सम एण्ड मिनरल्स इण्डिया लिमिटेड बनायी गई। इसका प्रशासनिक नियन्त्रण उर्वरक विभाग, उर्वरक एवं रसायन मंत्रालय भारत सरकार के पास था एवं इसकी अधिकृत पूंजी ₹ 10 करोड़ एवं प्रदत्त पूंजी ₹7.33 करोड़ थी। अविलयन के पश्चात फेगमिल ने खनिज व कृषि योग्य जिप्सम के खनन एवं वितरण का कार्य जारी रखा।